कुछ तो बात है तुम्हारी इन आँखों में,
इक अलग ही मज़ा है इनकी नादानियों में,
कुछ लगाव, कुछ झुकाव, कुछ कशिश,
कुछ शरारत, कुछ हरकत,
इन नशे के प्यालों में,
नज़रे उठी तो खिलती धूप,
झुकी तो चांदनी रात,
देख लिया कभी अगर तुमने तिरछी नज़र से,
ना जाने होगा क्या हाल तुम्हारी इस नज़ाकत से,
बस यही झुकी नज़रों से मुझे देखती रहो,
और कुछ मत कहो, और कुछ मत कहो...
इक अलग ही मज़ा है इनकी नादानियों में,
कुछ लगाव, कुछ झुकाव, कुछ कशिश,
कुछ शरारत, कुछ हरकत,
इन नशे के प्यालों में,
नज़रे उठी तो खिलती धूप,
झुकी तो चांदनी रात,
देख लिया कभी अगर तुमने तिरछी नज़र से,
ना जाने होगा क्या हाल तुम्हारी इस नज़ाकत से,
बस यही झुकी नज़रों से मुझे देखती रहो,
और कुछ मत कहो, और कुछ मत कहो...
